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REWA में जिस कोलगढ़ी का CM करने जा रहे है जीर्णोद्धार जानिए, उस कोलगढ़ी का क्या है इतिहास…

कभी त्योथर की इस गढ़ी से चलता था कोल सम्राज्य का शासन…
तेज खबर 24 रीवा।


मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 9 जून यानी आज जिस ऐतिहासिक और प्राचीन कोलगढ़ी का जीर्णोद्धार करने जा रहे है उस कोलगढ़ी का अपने आप में एक बड़ा इतिहास है। कहते है कि विंध्य सहित प्रदेश के 14 जिलों में आबाद कोल जनजाति का कभी खुद का साम्राज्य था। रीवा के त्योंथर में इनकी राजधानी थी और आसपास के क्षेत्रों में शासन चलता था। धीरे.धीरे सत्ता पर दूसरे लोगों ने कब्जा जमा लिया और कोल जनजाति विकास की मुख्यधारा से ही अलग होती गई। गांवों में अब यह तंगहाली का जीवन जी रहे हैं। जिस स्थान पर कोल राजाओं का निवास हुआ करता था, वहां भुर्तिया और वेणुवंशीय राजाओं ने भी शासन किया। कोल जनजाति के बाद भी चाहे भले ही दूसरे शासक रहे हों, लेकिन इनका जो किला था, वह कोल गढ़ी के नाम से ही जाना जाता है। अब कोल जनजाति की मांग पर सरकार ने जीर्णोद्धार की योजना बनाई है।

रीवा शहर आबाद होने से पहले बसाया गया था त्योंथर
इतिहासकारों की मांने तो त्योंथर को रीवा शहर आबाद होने से पहले बसाया गया था। यह तमसा (टमस) नदी व खरारी नदी के संगम पर होने के साथ ही विन्ध्य पर्वत की तलहटी में स्थित है। भौगोलिक दृष्टि से उस दौर में यह सुरक्षित जगह माना गया था। यहां कोल शासकों ने साम्राज्य चलाया। इन पर भुर्तिया समुदाय ने हमला कर हराया और गढ़ी पर अपना शासन जमा लिया। कई वर्षों तक यह भुर्तिया राजा के अधीन रहा। इसके बाद उत्तर प्रदेश के वेणुवंशीय शासकों ने भुर्तिया को हराकर कब्जा जमा लिया था। इतिहासकार रामसागर शस्त्री की क्योंटी की गढ़ी’ पुस्तक के अनुसार, रीवा के महाराजा रहे वीर सिंह ने 16वीं शताब्दी के आरम्भ में उत्तर की ओर राज्य विस्तार किया और अरैल झूंसी तक का इलाका वेणुवंशीय व छोटे राजाओं से जीतकर अपने अधिकार में कर लिया। इसी दौरान त्योंथर रीवा राज्य के अधीन हो गया। कई वर्ष वेणुवंशीय रीवा महाराजा के अधीन रहकर शासन करते रहे।

इन्होंने किया था कोलगढ़ी का विस्तार
भुर्तिया शासकों को भगाने के बाद वेणुवंशीय (वेनवंशी) राजा गनपत शाह के कार्यकाल में कोल गढ़ी को विस्तार दिया गया था। उस दौरान वेणुवंशीय राजा की सेना में कोल शासकों के कई योद्धा व सैनिक भी साथ थे। इसलिए उन्होंने इसे कोल गढ़ी के रूप में पहचान दी। इतिहासकारों की मांने तो वेणुवंश की शुरुआत ही त्योंथर से हुई थी। कई पुस्तकों में इसकी कहानियां हैं। अरैल (अब उत्तर प्रदेश) में गौतम क्षत्रियों का शासन था। एक बार वहां के शासक शिकार खेलने त्योंथर तक पहुंच गए। वह यहां लंबे समय तक रहे। इस बीच एक कोल कन्या से प्रेम हो गया। जातीय विरोध के चलते राजा उस कन्या को स्वीकार नहीं कर पाए और छोड़कर चले गए। बाद में कन्या ने पुत्र को जन्म दिया और तमसा नदी में प्रवाहित कर दिया। बाद में बसोर परिवार ने उसका पालन पोषण किया। वर्षों बाद गौतम जब फिर शिकार के लिए आए तो देखा कि बच्चे की रक्षा सर्प कर रहा है। उसकी कहानी पूछी और वेशुवंशी (वेण.बांस) जाति घोषित कर दी। उसे झूंसी का इलाका जीवन निर्वाह के लिए दिया। बाद में उक्त बालक प्रतापी योद्धा हुआ और त्योंथर में अपना शासन जमाया। कई पुस्तकों तक इस वंश ने शासन किया।

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